मुश्किलें इतनी पड़ीं मुझ पर कि आसां हो गईं



सुधीर मिश्र
अहमद फराज़ साहब के एक शेर पर गौर करिए-
मैंने देखा है बहारों में चमन 
को जलते
है कोई ख़्वाब की ताबीर 
बताने वाला
सारा मुल्क आजकल ख्वाब देख रहा है। तरह-तरह के सपने हैं। किसी को उम्मीद है कि देश सोने की चिड़िया बन जाएगा। कोई यह सोचकर खुश है कि अब देश को बदलने का दावा करने वाले खुद ही बदल जाएंगे। कोई बुरे सपने देख रहा है कि कहीं इनकम टैक्स का छापा न पड़ जाए। कोई यह सोचकर खुशी में सो नहीं पा रहा कि पड़ोस की हवेलीवालों को अब फकीर बनने में देर नहीं।
खैर, जैसी नींद वैसे ख्वाब। जैसा खाएंगे अन्न, वैसा रहेगा मन। तो मियां हुआ यूं कि ख़्वाब पूरे होंगे या नहीं, यह समझने के लिए एक शाम निकल पड़े। खाली पड़े एटीएम के बाहर एक फ्रेंचकट दाढ़ी वाला शख्स खड़ा था। शक्ल से ही लग रहा था कि कोई कवि टाइप आदमी है। मैंने पूछा-भाई पैसा है या नहीं एटीएम में। झुंझलाते हुए उसने जवाब दिया-दिखाई नहीं पड़ रहा है क्या। पैसा होता तो हम तुम अकेले खड़े होते यहां। गुस्सा वाजिब था। मैंने कहा-भाई थोड़ा सब्र करो, परेशानी दूर होगी। अच्छे दिन आएंगे। इतना कहना था कि उसके भीतर छिपे व्यंग्यकार ने विकराल रूप धारण कर लिया। बोला आएंगे नहीं, आ चुके हैं-देखिए न पूरा देश अपने पैरों पर खड़ा है।
मैंने बोला, इससे महंगाई तो कम हुई ही है। वह फिर फट पड़ा- जी हां, बिल्कुल महंगाई ने नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली है। दाल तो इतनी सस्ती हो गई है कि नमक को खुद पर घमंड हो रहा है। आपने देखा नहीं, पूरे प्रदेश में ब्लैक में बिक रहा था। टमाटर सड़कों पर कुचला जा रहा है। आलू विधानसभा के सामने मुफ्त बांटा जा रहा है। वह बोलता चला गया- तेल तो इतना निकल रहा है कि हम रूस, अमेरिका को निर्यात करने की हैसियत में आ चुके हैं। रोजगार इतना बढ़ गया है कि ट्रम्प को अमेरिकियों के भारत में हो रहे ब्रेन ड्रेन को रोकने के लिए कानून बनाना पड़ रहा है। अब यहां इतनी नौकरियां होंगी कि अमेरिकी नौजवानों को भर्ती किया जाएगा। अपन फिर बोल पड़े- महोदय कम से कम कालेधन वालों की तो आफत आ ही गई है। बैंकों में छापे पड़ रहे हैं। नए-पुराने अरबों के नोट पकड़े जा रहे हैं। उसने फिर से जवाब दिया-अरे भइया पूछिए मत। काले धनवाले तो बस अब फांसी लगाने वाले हैं। सारे फाइव स्टार होटल बंद हो जाएंगे। उनकी जगहों पर रिटायर फौजियों के ढाबे खुलेंगे। और आतंकवाद तो ऐसा मिटेगा कि चीन पाकिस्तान तक लाइन ऑफ कंट्रोल से पांच किलोमीटर पीछे अपनी सेनाएं रखेंगे।
अब अपन को भी गुस्सा आ गया। मैंने कहा, मज़ाक क्यूं कर रहे हो तो वह मुझ पर उल्टा चढ़ बैठा और बोला-शुरू किसने किया था। तब तक पास से गुजर रहे कुछ और लोग वहां आ गए। बीचबचाव शुरू हुआ तो मामला बढ़ने लगा। हम दोनों किनारे हो चुके थे और लोग आपस में भिड़े थे। बीच-बचाव के दौरान ही वहां किसी ने बहस शुरू कर दी थी कि नोटबंदी ज्यादा अच्छी है कि शराबबंदी। नोट और शराब से ऊपर उठकर मामला नेताओं तक पहुंचने लगा। मुझे लगा-मामला बिगड़ने वाला है। व्यंग्यकार कवि ने मुझे देखा और बोला-भाई जी, निकल ही लिया जाए यहां से। मामला बिगड़ रहा है। तब तक नोट से भरी बैंक की वैन वहां आ पहुंची। आनन-फानन में सारा झगड़ा खत्म हो गया। लोग एकदम से लाइन में खड़े हो गए। मैं सबसे पीछे था। मेरे आगे कवि खड़ा था और मैं ग़ालिब के इस शेर को याद करते हुए सोच रहा था कि चलो कम से कम लाइनों में लगने का सलीका तो आया।
रंज से ख़ूगर हुआ इन्सां तो मिट जाता है रंज
मुश्किलें इतनी पड़ीं मुझ पर कि आसां हो गईं

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