उधार लेकर जियो, पर स्कॉच जरूर पियो


अपन हमेशा से गणित से घबराते हैं। सिर्फ मैं ही क्यूं, वह पूरी पीढ़ी जिसने यूपी बोर्ड से 1986-87 या आसपास के वर्षों में दसवीं पास की हो, उससे पूछ लीजिए। 75 प्रतिशत लोग खुले मन से यह बात मानेंगे कि गणित बहुत भयानक थी। उस वक्त तक नेताजी मुलायम सिंह यादव की सपुस्तक परीक्षा प्रणाली और फिर उदारता से अंक बांटे जाने वाली नीति लागू नहीं हुई थी। लिहाजा 25 से 27 प्रतिशत लोग ही दसवीं पास कर पाते थे। ज्यादातर के भगीरथ प्रयास दो से पांच साल तक जारी रहते थे। अपन खैर '86 में फेल होकर 87’ में गुड सेकंड डिवीजन में पास हो पाए।

यह बातें महज नॉस्टेल्जिया नहीं। इस प्रसंग की याद किंगफिशर कैलेंडर वाले अपने माल्या साहेब की वजह से आई। मेरे ख़याल से व्यवहार गणित को छोड़ बाकी गणित में उनकी भी कच्ची टिकिया ही रही होगी। यही वजह है कि इस 'एनआरआई' को भारतीय बैंकों का हजारों करोड़ लेकर विदेश फुर्र होना पड़ा। उनकी गणित भले ही कमजोर रही हो, पर दर्शन शास्त्र में यकीनन बेहतरीन पकड़ रही होगी। खासतौर पर हिन्दू दर्शन में। हिन्दुओं में दो तरह के दर्शन माने जाते हैं। आस्तिक और नास्तिक। आस्तिक में सांख्य, योग, न्याय, मीमांसा, वैशेषिक और वेदांत आते हैं। नास्तिक में जैन, बौद्ध और चार्वाक का जिक्र होता है। माल्या साहेब को चार्वाक दर्शन में महारथ हासिल है। चार्वाक कहते हैं-
यावज्जीवेत सुखं जीवेत, ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत।
भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः॥
आज के हिसाब से इसका अर्थ है कि जब तक जिंदा रहो, ऐश के साथ जियो। गुमनाम आई लैंड में सुरा-सुंदरी के साथ किंगफिशर कैलेंडर बनवाओ। स्कॉच पियो और मौज करो। चार्वाक कहते हैं कि अगला जन्म कुछ नहीं होता। लिहाजा इस जन्म में तो परलोक की चिंता मत करो। माल्या उससे आगे जाकर सोचते हैं कि इस जन्म में भी कोई क्या उखाड़ लेगा। एक विचारक हुए हैं विक्टर ओलिवर। उन्होंने कहा था-जो पैसे के पीछे भागता है वह पागल, जो जमा करता है वह पूंजीवादी, जो खर्च करता है वह प्ले बॉय, जो पाना नहीं चाहता वह महत्वाकांक्षाहीन, जिसे बिना किए कुछ मिल जाए वह परजीवी और जो इकट्ठा करके बिना उपभोग किए मर जाता है, उससे बड़ा मूर्ख कौन होगा? यकीनन माल्या मूर्ख तो कतई नहीं। हां, ओलिवर के हिसाब से वह प्ले बॉय हुए। ओलिवर हों या चार्वाक, उन्होंने अपने सिद्धांत काफी पहले दिए। माल्या साहेब ने आज के युग में उसे व्यवहार में जिया। गजब प्रेरणादायी व्यक्तित्व हैं। बैंकों का हजारों करोड़ स्कॉच के साथ गटक गए और डकार तक नहीं ली। अब आराम से लंदन में टेम्स के किनारे आयरिश कॉफी के मजे ले रहे होंगे। 
दूसरी तरफ गरीब किसान हैं। बैंकों के कुछ हजार के कर्ज से ही घबराकर आत्महत्या कर लेते हैं। बुंदेलखंड से लेकर विदर्भ तक विधवाओं के गांव बस गए हैं इन बैंकों के कर्ज के चक्कर में। अमेरिकी लेखक हेनरी मिलर के मुताबिक, सारी दुनिया में पैसा दो तरह से खर्च किया जाता है। पहला हार्ड मनी और दूसरा सॉफ्ट मनी। हार्ड मनी मतलब घर गृहस्थी चलाने के लिए रोजमर्रा की खरीदारी में खर्च किया जाने वाला पैसा। सॉफ्ट मनी मतलब अपने दोस्तों या गर्लफ्रेंड के तोहफों और पार्टियों पर खर्च किया जाने वाला पैसा। हमारी-आपकी हार्ड मनी के हिस्से से माल्या साहेब सॉफ्ट मनी खर्च करते रहे। न तो सीबीआई ने और न ही बैंकों ने कभी पूछा कि भैया, 14 करोड़ में युवराज सिंह को कैसे खरीद रहे हो, रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु का खर्च कहां से कर रहे हो। अब माल्या साहेब कोई किसान तो थे नहीं कि ट्रैक्टर उठवा लें या जमीन नीलाम करवा दें। कांग्रेस-बीजेपी सब दोस्त। दोस्ती निभाते रहे। हमें गरीब किसानों को साहेब से ट्रेनिंग दिलवानी चाहिए थी कि बैंकों से लोन लेकर कैसे मौज करें। वैसे अब भी कर्जदार किसानों की परेशान फौज है इस देश में। उनकी तरफ से मुमताज मिजी का यह शेर विजय माल्याजी को समर्पित-
तुम को हम दिल में बसा लेंगे, तुम आओ तो सही
सारी दुनिया से छुपा लेंगे, तुम आओ तो सही
आओ साहेब आओ, कुछ हम गरीबों को भी सिखाओ
(इस शेर में आखिरी मिसरा मेरी ओर से बामाफी)

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